नेताओं के बेतुके बोल

पिछले दिनों मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिह चौहान द्धारा देश के पर्व प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू पर की गई एक टिप्पणी को लेकर बवाल मचा हुआ था इस पर प्रतिकिया स्वरूप कांग्रेस समर्थित नेताओं ने जहॉ शिवराजसिह चौहान के बयान की आलोचना की तो वही उन पर कटाक्ष भी किया गया इस दौरान उपयोग की गई भाशा को लेकर काफी आलोचना भी हुई लेकिन किसी भी दल के नेता को अपने शब्दों पर शर्मिन्दगी नही हुई बल्कि वह भी बढचढकर अपने बयान देकर चर्चाओं में रहे । ऐसा नही है कि यह बयानवाजी का दौर अभी शुरू हुआ है इसके पूर्व भी शिवराजसिहँ अपने विवादित बोल "कोई माई का लाल नहीं है जो कि आरक्षण को समाप्त कर सकें" को लेकर चर्चाओं पर रहे और भाजपा के ही दिग्गजों ने इसकी आलोचना करने के बजाय प्रोत्साहित किया। अभी हॉल ही भाजपा के एक पूर्व राज्य मंत्री रामपाल सिहॅ द्धारा अपने बयान में कांग्रेसी नेताओं पर चरणामृत संबधित बयान भी यह सोचने पर मजबूर करते है कि आखिरकार राजनेताओं द्वारा इस तरह के वक्तव्य देकर साबित क्या करना चाहते हैनिश्चित तौर पर देश केप्रधानमंत्री द्धारा काश्मीर में धारा 370 की समाप्ति एक अच्छा ऐतिहासिक फैसला हो सकता है जिसकी प्रशंसा किया जाना सभी के लिये अपने विचार हो सकते है लेकिन कुछ लोगो की असहमति पर उनके विरोध में आलोचना का स्तर इतना भी निचला नहीं होना चाहिये कि हमें शर्म आये कि जनप्रतिनिधियों के वक्तव्यों पर आम जनता यह सोचने पर मजबूर हो जाये कि क्या ऐसा जनप्रतिनिधियों को दुबारा समर्थन दिया जाये या फिर नहीं धारा 370 को लेकर बयानबाजी कर रहे किसी भी राजनैतिक दल ने विश्व की भीशणतम गैस त्रासदी के इतने बर्शो के बाद भी आज तक अंतिम निर्णय नहीं हो सका कि आखिरकार इन गैसपीडियों ने क्या गलती की थी कि आज तक वह उचित उपचार और अंतिम मुआवजा का इंतजार कर रहे ओर कई तो इंतजार करते हुये अंतिम संस्कार तक पहुँच गये किसी भी राजनैतिक दल ने इस पर कोई अंतिम फैसला आज तक नही लियाभोपाल की राजनीति करने वाले यह तो बताये कि उनके शहर की समस्या का आज तक खात्मा नही हुआ और देश की समस्या पर बयानवाजी कर क्या वह अपने आकाओं की चापलूसी नही कर रहे हैइन नेताओं को बयान देने के पूर्व यह तो सोचना चाहिये कि उन्हें भी मौका मिला था तब वह सक्षम भी थे तब उन्होने क्या किया विकास के नाम पर सरकारी खजाने को खाली किया और व्यापमं जेसे मुददे पर आम जनता का विश्वास खत्म किया ।आज भी आम जनता की स्थिति यह है कि वह सरकारी योजनाओं की जानकारी देने वाले दूरदर्शन पर निःशुल्क जानकारियाँ लेने से बंचित है और उसके लिये भी अग्रिम भुगतान देने को मजबूर है और विकास के झूठे बायदे कर जातिगत दूरियों से आम जनता को बाँध रखा है।


संपादक