रेलगाड़ी के टिकट को लेकर राजनैतिक वॉर
जब पूरा विश्व कोरोना की महामारी से लड़ रहा है। हर देश यह सोच रहा है की किस तरह इस बीमारी से बचा जा सखे व अनेक प्रयास कर रहे है । फिर चाहे वो ज्यादा से ज्यादा टेस्टिंग हो या फिर कड़ा लोखड़ौन का पालन करना। देश में भी जो जहा है वही रुक गया है बहुत से लोगो अपनों से दूर है तो कोई अकेला रह गया है । हमे यह समझना होगा की इस बीमारी से लड़ने का सिर्फ एक उपाय सावधानी ही है ।
सरकार ने प्रवासी मजदूरो से टिकट के पैसे लेने की कोई बात नहीं कही है क्यंकि उनके परिवहन का ८५ प्रतिशत हिस्सा रेलवे व १५ प्रतिशत राज्य सरकार वहन कर रही है । तीसरे लोखड़ौन में सरकार ने कई जगहों पर छूट दी है व प्रवासी मजदूरु को भी अपने घर जाने के अनुमति दे दी है ।लेकिन इनकी संख्या इतनी है की इन्हे ले जाना आसान नई होगा और फिर लोखड़ौन का पालन भी करना है। इसलिए सरकार ने इनके लिए कुछ ट्रैनों को उनके घर तक पहुचाने के लिए शिरू किया है लेकिन अब इनके टिकट को लेकर नया विवाद शुरु हो गया। सरकार ने कहा है की एक दो राज्य क छोड़कर फसे मजदूरु की यात्रा का समन्वय राज्य सरकार ही करेगी ।
टिकट के पैसो की बात को लेकर स्वाथ्य मंत्रालय के सयुक्त सचिव लव अग्रवाल ने कहा है की जहा तक प्रवासी श्रमिकों की बात है तो दिशानिर्देश में साफ है कि इस महामारी के समय जो जहा है उसे वही ठहरना चाहिए। उन्होंने कहा की कुछ मामलो में राज्यों के आग्रह पर विशेष रेलगाड़िया चलाने की अनुमति दी गयी है ।चाहे भारत सरकार हो या रेलवे किसी ने भी इन मजदूरु से कोई पैसे लेने को नहीं कहा है। सरकार ही उनका खर्च का भुकतान करेगी उन्होंने कहा की राज्यों के आग्रह पर किसी निश्चित कारण सिमित्तके चलते इन प्रवासी मजदूरो को उनके घर तक पहुँचा रहे है जहा पर उनकी पूरा जांच होगी व क्वारंटाइन के बाद ही वे अपने घर जा सकेंगे ।
जब देश ऐसी महामारी से गुजर रहा है तब भी हमारे देश के कुछ लोग अपना निहित स्वार्थ को पूरा करने में लगे है । जहा एक और यह मजदूर बिच में फसे है व जीवित है कुछ लोग उनसे ज्यादा पैसे लेकर उन्हें उनके घर लेजा रहे है जो की अमानवीय है यह लोग जहा एक और इस महामारी को बड़ा रहे वही दूसरी और इन मजदूरो के जीवन के साथ खेल रहे है अंत सभी से आशा है की वह इस समय देश के हित में सोचे व अपने कर्तव्यों को पूरा करे ।