दो चरणों की वोटिंग के बाद क्या BJP 'रक्षात्मक मुद्रा' में है?




रांची। झारखंड के दूसरे चरण के चुनाव में 64. 39 फीसद वोट पड़े हैं. इस दौरान चुनावी हिंसा में एक व्यक्ति की मौत हुई है. दूसरी ओर मुख्यमंत्री रघुबर दास ने माना कि सहयोगी के रूप में उनके लिए कोई दल अछूता नहीं. शनिवार सुबह से सबकी नज़र जमशेदपुर पूर्व सीट पर थी और जिस चुनाव केंद्र पर मुख्य मंत्री रघुबर दास को वोट डालना था वहां उनसे पहले सहयोगी रहे और अब बाग़ी सरयू राय पहुंच गये. फिलहाल माना जा रहा है कि इन दोनों चरणों के मतदान के बाद बीजेपी बचाव की मुद्रा में दिख रही है और वहीं उनके विपक्ष में हेमंत सोरेन के नेतृत्व का गठबंधन आक्रामक. लेकिन अब तक जो प्रचार और मतदान हुआ है उससे कई बातें साफ़ हैं.



12 बड़ी बातें


  1. पहली बार बीजेपी का विधानसभा चुनाव में बिना किसी सहयोगी के जाना एक राजनीतिक भूल साबित हो रही है. बीजेपी के उम्मीदवार भी मान रहे हैं कि सुदेश महतो की AJSU से गठबंधन होता तो उनके परंपरागत वोट मिलते और जिससे उन्हें लाभ मिलता. किसी भी दल ख़ासकर पुराने सहयोगी से तालमेल का ख़ामियाज़ा उन्हें कुमी कोयरी वोटर के बिखराव और नाराज़गी में देखने को मिल रही है. 

  2. ये पहला चुनाव है जहां वोटरों को मालूम है कि उनका एक वोट रघुबरदास को फिर से  या हेमंत सोरेन को एक बार फिर मुख्यमंत्री की ताज दिला सकता है. भले बीजेपी ने पांच साल में मुख्यमंत्री ना बदला हो लेकिन हेमंत लोगों की पसंद में रघुबर पर भारी पड़ रहे हैं.  इसका एक उदाहरण उनके जमशेदपुर पूर्वी सीट पर देखने को मिला जहां बीजेपी के अधिकांश समर्थक बाग़ी सरयू राय को केवल रघुबर और उनके परिवार के अहंकारी व्यवहार से नाराज़ होकर वोट दे रहे थे. 

  3. झारखंड में आदिवासी वोटर भाजपा के प्रति उदासीन हैं. इसक फ़ीडबैक ख़ुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह को मिल चुका है. इसलिए खूंटी की सभा में प्रधानमंत्री मोदी ने बीजेपी के वरिष्ठ नेता करिया मुंडा को मंच पर अपने साथ बिठाया जिनको लोकसभा चुनाव में टिकट से बेदख़ल कर दिया गया था.  पीएम मोदी ने कहा कि उन्होंने राजनीति में करिया मुंडा जैसे लोगों से बहुत कुछ सीखा है साथ ही प्रधानमंत्री ने जम्मू कश्मीर के उपराज्यपाल गिरिश चंद्र मुर्मू का नाम लिए बिना चर्चा की. पीएम ने कहा कि जम्मू-कश्मीर में स्थिति सामान्य और विकास के लिए एक आदिवासी को ही प्रभार दिया गया है.

  4. लेकिन ज़मीनी हक़ीक़त यही है कि लोग जहां ख़ासकर आदिवासी जिनके ऊपर बीजेपी का प्रभाव इसलिए पड़ा था क्योंकि उन्होंने बाबूलाल मरांडी के बाद अर्जुन मुंडा को झारखंड का हमेशा दायित्व दिया था लेकिन जब बहुमत की सरकार आई तो नरेंद्र मोदी और अमित शाह की पसंद रघुवर दास बने और इस चुनाव में भी उन्हीं के चेहरे पर वोट मांगा जा रहा है. जबकि सामने हेमंत सोरेन है इसलिए आदिवासी वोटरों का BJP से ज़्यादा झुकाव हेमंत सोरेन के नेतृत्व वाले गठबंधन के उम्मीदवारों पर दिख रहा है.

  5. झारखंड में आदिवासियों के लिए 28 सीटें आरक्षित हैं और इन सीटों पर ज़मीन के मालिकाना हक़ से जुड़े CNT एक्ट और CNPT ऐक्ट का भी  असर काफ़ी देखने को मिल रहा है. रघुवर सरकार के दौरान इसमें संशोधन का प्रस्ताव किया गया था जिसका आदिवासियों ने जमकर विरोध किया और बाद में सरकार को यह निर्णय वापस लेने पर लोगों में एक भय है कि अगर रघुवर सरकार फिर वापस आयी तो इस ऐक्ट को वापस लाया जा सकता है.

  6. OBC यानी पिछड़ी जाति लोकसभा चुनाव में जितनी आक्रामक थी BJP के प्रति लोकसभा चुनावों की तुलना में बहुत ज़्यादा उत्साहित और आक्रामक नहीं है उसकी दो वजहें बताई जा रही हैं, एक आरक्षण में छेड़छाड़ की गई है उस से नौकरियों में ख़ासकर सरकारी नौकरियों में उनके लिए हिस्सेदारी कम हुई है और CNT एक्ट और CNPT  में भी उनके लिए जो वर्तमान में की ख़रीद बिक्री का जो प्रावधान किया गया है उससे इस तबके में ख़ासी नाराज़गी है. हालांकि BJP को इस बात का भी अंदाज़ा है इसलिए उसने अपने घोषणा पत्र में आरक्षण के प्रावधान को आबादी के अनुपात में करने का वादा किया है.

  7. राजनीति में BJP भ्रष्टाचार के मुद्दे पर उसकी एक अलग पहचान थी लेकिन इस बार जो उसने सर्वे के आधार पर दाग़ी व्यक्तियों को ख़ासकर मधु कोड़ा घोटाले में स्वास्थ्य विभाग में 130 करोड़ का घोटाला करने वाले भानु प्रताप को दूसरे दल से लाकर जैसे टिकट दिया गया. उससे ख़ुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह की व्यक्तिगत छवि को भी धक्का लगा है क्योंकि उन्होंने एक तरफ़ तो दागियों को टिकट दिया और दूसरी तरफ़ सरयू राय जैसे लोगों को टिकट से वंचित किया गया जिसके कारण इस बार भ्रष्टाचार के मुद्दे पर बीजेपी के नेता भले ही बार बार कह रहे हो तो उनके समय में कोई भी घोटाला नहीं हुआ लेकिन लोगों का मानना है कि भ्रष्टाचार के मुद्दे पर बीजेपी की कथनी और करनी में अंतर है.

  8. जब सरयू राय जैसे नेता कंबल घोटाले से लेकर माइनिंग घोटाले तक गिनाने लगते हैं तो लोगों की ज़ुबान पर उनकी बातें आ ही जाती हैं. विपक्ष के नेता भी मानते हैं कि राय को टिकट ना मिलने से और शाही को टिकट देकर बीजेपी ने झारखंड की राजनीति में एक मुद्दा खोया है.

  9. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हों या रघुबर दास दोनों का कहना था कि डबल इंजन की सरकार होगी तो विकास होगा लेकिन लोगों का कहना हैं कि पांच वर्षों में जब रांची -जमशेदपुर राजमार्ग का निर्माण कार्य पूरा नहीं हो पाया तो ये कैसे दावा कर सकते हैं कि केंद्र और राज्य में एक सरकार रहने से आम लोगों का फ़ायदा होता है. 

  10. भ्रष्टाचार और विकास के मुद्दे पर बीजेपी को झारखंड के चुनावी इतिहास में पहली बार बहुमत मिला लेकिन झारखंड में हुए घोटालों में एक भी आरोपी को सज़ा दिलाने में सरकार नाकामयाब रही. वहीं कोयले के माइनिंग में जो नीलामी हुई थी उससे एक नये झारखंड के निर्माण का वादा किया गया था लेकिन अधिकांश कंपनियों ने माइनिंग शुरू ही नहीं किया.  

  11. पूरे झारखंड में आर्थिक मंदी का अच्छा ख़ासा असर देखने को मिल रहा है. यहां हर तरह के खनिज पदार्थ के माइनिंग से लेकर कारख़ाने हैं जहां मंदी का असर मज़दूर वर्ग पर अधिक है. जिसके कारण बीजेपी के प्रति उनका रुझान अब उत्साहवर्धक और आक्रामक नहीं रहा.  

  12. झारखंड में बार बार चुनाव प्रचार में केंद्र सरकार की योजनाओं जैसे बिजली, नये घर या शौचालय का ज़िक्र किया जाता है लेकिन आम वोटरों का कहना है कि उसके आधार पर तो उन्होंने लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को वोट दे ही दिया है जिन मुद्दों पर राज्य सरकार ने पिछली बार वोट मांगा था आख़िर उस पर क्यों नहीं बताया जाता है कि उन वादों और घोषणाओं का क्या हुआ बार बार चुनाव और राम की तरफ़ ले जाने ले जाने की कोशिश होती है.