जीरो बजट फार्मिंग की जरूरत

महात्मा गाँधी के अनुसार .....


धरती में इतनी क्षमता है कि वह सब की जरूरत को पूरा कर सकती है लेकिन किसी के लालच को पूरा करने में सक्षम नहीं है ।


 


                           


महात्मा गांधी के किस वाक्य को ध्यान में रखकर जीरो बजट फार्मिंग या प्राकृतिक खेती की रचना की गई है।अगर खेती इस तरीके से की जाए तो किसान को ना तो अपने उत्पाद को कम दामों में बेचना पड़ेगा और ना ही पैदावार कम होने की शिकायत रहेगी लेकिन सोना उगलने वाली हमारी धरती पर खेती करने वाला किसान लालच का शिकार हो रहा है वह कुछ पैसों के लिए कीटनाशकों पेस्टिसाइड का उपयोग कर रहा है जिससे ना केवल धरती को नुकसान पहुंच रहा है अपितु खाद्य पदार्थ भी दूषित हो रहा है और विभिन्न बीमारियों का कारण है ।


कृषि आधारित अर्थव्यवस्था वाला देश में रसायन खेती के बाद अब जैविक खेती सहित पर्यावरण हितैषी खेती, एग्रीकल्चर फार्मिंग, बायोडायनेमिक फार्मिंग खेती, शाश्वत कृषि, सजीव खेती , पंचगव्य इत्यादि अनेक प्रकार की सफलता के दावे करते आ रहे हैं जीरो बजट खेती है । क्या देसी गाय के गोबर एवं गोमूत्र पर आधारित एक ऑर्गेनिक फार्मिंग का ही एक रूप है एक देसी गाय के गोबर गोमूत्र से एक किसान 30 एकड़ जमीन से जीवामृत एवं जामुन बनाए जाता है । इसका खेत में उपयोग करने से मिट्टी में पोषक तत्वों की वृद्धि के साथ-साथ जैविक गतिविधियों का विस्तार होता है। जीवामृत का महीने में एक से दो बार खेतों में छिड़काव किया जाता है, जबकि जीवामृत को उपचारित करने में किया जाता है। इस विधि से खेती करने वाले किसान को बाजार से किसी प्रकार की खाद और कीटनाशक रसायन खरीदने की जरूरत नहीं पड़ती है। फसलों की सिंचाई के लिए पानी एवं बिजली भी मौजूदा खेती-बाड़ी की तुलना में 10% की खर्च होती है। जीरो बजट प्राकृतिक खेती जैविक खेती से भिन्न है तथा ग्लोबल वॉर्मिंग और वायुमंडल में आने वाले बदलाव का मुकाबला एवं उसे रोकने में सक्षम है। इस तकनीक का इस्तेमाल करने वाला किसान कर्ज के झंझट में से भी मुक्त रहता है। प्राप्त जानकारी के अनुसार अब तक देश में करीब 4000000 किसान इस विधि से जुड़े हुए आयातित।